काठमाडौं । कवि, अन्वेषक शशी लुमुम्बूकाे चर्चित कविता पहाडबूढाे एकैसाथ विश्वका पाँच भाषा ,नेपाली , हिन्दी, अंग्रेजी, बंगाली र चिनियाँ भाषामा एकैसाथ प्रकाशित भएको छ । पाँच भिन्नभिन्न भाषामा अनुवाद गरिएकाे कविता यसप्रकार छन् :
पहाडबूढो
– शशी लुमुम्बू
म पहाडबूढो
टेकेर इन्द्रेनीको लौरो
हिँडिरहेछु काँडैकाँडाको यात्रा !
कहाली लाग्ने भुत्याहा पहरा
बाँदर लड्ने तीनतले भीर
सत्तीबयरको झ्याँङमा चैते मध्याह्न
समाउँदै बाबियोका बुटा
थर्रर काँप्दै बेनाम भयले
चढिरहेछु खुर्खुरे डाँडैडाँडा
ताकेर कुनै कुनाली बस्ती !
निस्किएर –
रूखका टोड्काहरूबाट
भर्खरै –
अज्ञात दिशातर्फ बेगिए
यही युगका सुत्केरी सुगाहरू !
म पहाडबूढो
भुइँभरि खसेका
सालका मृत पातहरू कुल्चँदै
हिँडिरहेछु –
स-याङ्स¥याङ्
वनको कुनै तस्करजस्तो !
किंवदन्तीजस्ता प्रेमकथाहरू
सुनाउँदै आएँ वरपीपललाई
फलैँचामै छोडेर थकानहरू
पाइलैपिच्छे जुझ्दै आएँ चट्टानसित !
मेरो शरीरबाट
पसिनाको नदी बग्यो
मेरो आँखाबाट
कलकलाउँदो चन्द्रमा जन्म्यो !
थाकेँजस्तो लाग्छ अब त
तर, थाकेको छैन
गलेँजस्तो लाग्छ अब त
तर गलेको छैन !
निःसन्देह –
पुग्नु छ मैले ती गाउँहरूमा
– ब्यूँझाउन सुतिरहेका मानिसहरू
– रोप्न इन्द्रेनीका बीउहरू !
म पहाडबूढो
टेकेर इन्द्रेनीको लौरो
हिँडिरहेछु काँडैकाँडाको यात्रा !!!
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पहाड़ी वृद्ध
मैं हूँ एक पहाड़ी वृद्ध,
इंद्रधनुष की छड़ी टेककर
चल रहा हूँ काँटों से भरे इस सफ़र पर !
भयानक, डरावनी चट्टानों से भरे पहरे,
तीन मंज़िला खड़ी पहाड़ियों से गिरते बंदर,
सत्तीबयर की झाड़ियों में, चैत्र की दुपहरी में
पकडते हुए बfबियों के झुंड,
बेचैन भय से काँपता हुआ
चढ़ता जा रहा हूँ ऊँची-ऊँची पहाड़ियों पर
ताकते हुए किसी कोने में बसे गाँव की ओर !
निकल पड़ी हैं—
पेड़ों की डालियों से—
अभी-अभी—
अनजान दिशाओं की ओर उड़ती
इस युग की नवप्रसूता तोतियाँ !
मैं हूँ एक पहाड़ी वृद्ध,
ज़मीन पर गिरे
साल के मरे पत्तों को रौंदता हुआ
चल रहा हूँ—
सरसराकर,
जैसे कोई वन-तस्कर !
किंवदंतियों जैसी प्रेम कहानियाँ
सुनाता आया हूँ वट और पीपल को,
फलों से भरे झाड़ियों में छोड़ आया हूँ अपनी थकान,
हर कदम पर चट्टानों से जूझता आया हूँ !
मेरे शरीर से
पसीने की नदी बह निकली,
मेरी आँखों से
कलकलाता चाँद जन्मा !
लगता है अब थक गया हूँ मैं,
लेकिन मैं थका नहीं हूँ;
लगता है अब पिघल गया हूँ,
लेकिन मैं पिघला नहीं हूँ !
निःसंदेह—
मुझे पहुँचना है उन गाँवों में
– जहाँ सोए हुए हैं लोग,
– जहाँ बोने हैं इंद्रधनुष के बीज !
मैं हूँ एक पहाड़ी वृद्ध,
इंद्रधनुष की छड़ी टेककर
चल रहा हूँ काँटों से भरे इस सफ़र पर !!!
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The Old Man of the Hills
I am the old man of the hills,
leaning on a cane made of rainbows,
walking a journey
paved with thorns!
Through haunted cliffs
that send chills down the spine,
along triple-tiered precipices
where monkeys slip and fall,
I climb—
clutching wild babiyo grass
beneath the scorching mid-day of spring,
trembling
with unnamed fears,
scaling one rugged ridge after another,
searching
for a hidden village in some distant corner.
Just now—
from the tree hollows,
newborn doves of this very age
fluttered away
toward an unknown horizon!
I am the old man of the hills,
stepping over
fallen, lifeless leaves of the sal tree,
moving forward
saryāng-saryāng,
like a smuggler in the forest shadows.
Telling tales
of legendary love
to the banyans and pipals,
I left behind my weariness,
unharvested like ripe grain,
and faced the boulders
with every determined step.
From my body,
a river of sweat has flowed;
from my eyes,
a radiant moon has risen!
It feels like I am tired now—
but I am not tired.
It feels like I am fading—
but I have not faded.
Undoubtedly,
I must reach those villages
— to awaken the sleeping souls,
— to plant the seeds of rainbows!
I am the old man of the hills,
leaning on a cane made of rainbows,
walking a journey
paved with thorns!
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পাহাড়ের বৃদ্ধ
আমি এক পাহাড়ের বৃদ্ধ,
রঙধনুর লাঠি ভর দিয়ে
হেঁটে চলেছি কাঁটাময় যাত্রাপথে!
ভয়াল, ভুতুড়ে খাড়া পাহাড়,
যেখানে তিনতলা উঁচু থেকে পড়ে বানর,
চৈত্রের দুপুরে সত্তীবয়ের ঝোপঝাড়ে
বাঁধছি বাবিয়োর ঝাঁক,
ভয়ে কাঁপতে কাঁপতে
আরও উঁচুতে উঠছি আমি,
চেয়ে থাকি কোনো এক কোণে লুকিয়ে থাকা গ্রামের দিকে!
বৃক্ষের ডাল থেকে
এই মুহূর্তে
অজানা দিগন্তে উড়ে যাচ্ছে
এই যুগের সদ্যোজাত টিয়া পাখিরা!
আমি এক পাহাড়ের বৃদ্ধ,
মাটিতে ঝরে পড়া
শালপাতা মাড়িয়ে
হেঁটে চলেছি –
শব্দ করে,
যেন আমি এক বন ডাকাত!
পুরনো উপকথার প্রেমগাথা
শোনাই গেছি বটগাছ আর অশ্বত্থকে,
ফলপল্লবের ঝোপে রেখে এসেছি ক্লান্তি,
প্রত্যেক ধাপে পাথরের সঙ্গে লড়াই করেছি আমি!
আমার শরীর থেকে
ঘামের নদী বয়ে গেছে,
আমার চোখে
জন্ম নিয়েছে কলকলানো চাঁদ!
মানুষ ভাবে আমি ক্লান্ত,
কিন্তু আমি ক্লান্ত নই!
মানুষ ভাবে আমি গলে গেছি,
কিন্তু আমি গলি নি!
নিশ্চয়ই—
আমাকে পৌঁছাতেই হবে সেইসব গ্রামে
– যেখানে মানুষ ঘুমিয়ে আছে,
– যেখানে রোপণ করতে হবে রঙধনুর বীজ!
আমি এক পাহাড়ের বৃদ্ধ,
রঙধনুর লাঠি ভর দিয়ে
হেঁটে চলেছি কাঁটাময় যাত্রাপথে!!!
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老山人
我是一个老山人,
拄着彩虹做的手杖,
走在满是荆棘的旅途上!
可怕的鬼影山崖,
猴子会跌落的三层峭壁,
在四月的正午,
穿越婆婆刺的灌木丛,
我一边抖着手捧着野果,
一边继续攀登高高的山峰,
望着远方那个村庄的方向!
就在这时——
从树枝上飞出,
这一时代新出生的鹦鹉,
向未知的天空展翅飞翔!
我是一个老山人,
踩着落满地的枯叶,
一路走着——
沙沙作响,
就像一个森林里的偷猎者!
我给榕树和菩提树
讲述过古老的爱情传说,
把我的疲惫
留在结果累累的灌木中,
每一步都与岩石搏斗着前行!
我的身体
流出了汗水之河,
而我的双眼
孕育出了明亮的月亮!
人们说我累了,
但我并不觉得累;
人们说我已经融化,
但我尚未融化!
是的——
我还要去到那些村庄
——那些沉睡着的人们所在的地方,
——我要在那里播种彩虹的种子!
我是一个老山人,
拄着彩虹做的手杖,
走在满是荆棘的旅途上!